Saturday, January 3, 2015

जो बीत गई सो बात गई

जो बीत गई सो बात गई।


जीवन में एक सितारा था,
माना वह बेहद प्यारा था,
वह टूट गया तो टूट गया,
अम्बर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फिर कहाँ मिले,
पर बोलो टूटे तारों पर,
कब अम्बर शोक मनाता है।
जो बीत गई सो बात गई।

जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उसपर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया,
मधुवन की छाती को देखो,
सूखी इसकी कितनी कलियाँ,
मुरझाई कितनी वल्लरियाँ,
जो सूख गयीं फिर कहाँ खिलीं,
पर बोलो सूखे फूलों पर,
कब मधुवन शोर मचाता है।
जो बीत गई सो बात गई।

जीवन में मधु का प्याला था,
तुमने तन मन दे डाला था,
वह फूट गया तो फूट गया,
मदिरालय का आँगन देखो,
कितने प्याले हिल जाते हैं,
गिर मिटटी में मिल जाते हैं,
जो गिरते हैं कब उठते हैं,
पर बोलो फूटे प्यालों पर,
कब मदिरालय पछताता है।
जो बीत गई सो बात गई।

मृदु मिटटी के बने हुए हैं,
मधु घट फूटा ही करते हैं,
लघु जीवन लेकर आये हैं,
प्याले टूटा ही करते हैं,
फिर भी मदिरालय के अन्दर,
मधु के घट हैं, मधु-प्याले हैं,
जो मदिरा के मतवाले हैं,
वो मधु लूटा ही करते हैं,
वो कच्चा पीने वाला है,
जिसकी ममता घट-प्यालों पर,
जो सच्चे मधु का जला हुआ,
कब रोता है चिल्लाता है।
जो बीत गई सो बात गई।

(डॉ हरिवंश रॉय बच्चन)

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